Quick Opinion- आंबेडकर-गांधी की दुहाई और संसद में हिंसक झड़प, ब्लैक थर्सडे के लिए कौन जिम्मेदार?

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के संसद में बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर पर दिए बयान को लेकर कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने संसद परिसर में प्रदर्शन किया। मगर, प्रदर्शन के दौरान संसद परिसर में जो हुआ, वो भारत के संसदीय इतिहास में काले अध्याय यानी ब्लै

4 1 9
Read Time5 Minute, 17 Second

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के संसद में बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर पर दिए बयान को लेकर कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने संसद परिसर में प्रदर्शन किया। मगर, प्रदर्शन के दौरान संसद परिसर में जो हुआ, वो भारत के संसदीय इतिहास में काले अध्याय यानी ब्लैक थर्सडे के रूप में दर्ज हो गया। बीजेपी सांसद प्रताप सारंगी और सांसद मुकेश राजपूत चोटिल हो गए। व्हीलचेयर पर बैठे सारंगी का एक वीडियो सामने आया है,जिसमें उन्होंने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर धक्का देने का आरोप लगाया है। आरोप है कि राहुल ने मुकेश राजपूत को धक्का दिया, जिससे वह व्हीलचेयर पर बैठे सारंगी पर गिर पड़े। हालांकि राहुल गांधी ने इन आरोपों को झूठा करार दिया है। संसद परिसर में जो भी हुआ, वह संसदीय इतिहास पर एक दाग की तरह दर्ज हो गया। आखिर ऐसा भी क्या विरोध कि किसी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़े? क्या सारी संसदीय मान-मर्यादा भूल गए हमारे माननीय। अफसोस कि हम ऐसे लोकतंत्र में रह रहे हैं, जिसकी वजह से भारत को पूरी दुनिया में शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है।

संविधान और सांसदी की शपथ की लाज तो रख लेते माननीय

संविधान में हर सांसद के लिए शपथ तय है। इसमें कहा गया है कि मैं, अमुक, जो राज्यसभा या लोकसभा में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रूप में निर्वाचित या नामनिर्देशित हुआ हूं। ईश्वर की शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा। मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा और जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूं उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा।...अब इसे पढ़कर आम जनता तो यही सोचेगी कि यह किस तरह की सियासत है? धक्का-मुक्की या हाथापाई तो कतई नहीं होनी चाहिए। कम से कम संविधान और शपथ की लाज तो रख लेते।

क्या बाबा साहेब और गांधी ने यही दी थी विरासत

हमारे माननीयों को एक बात यह समझनी होगी कि जिस संविधान, बाबा साहेब और गांधीजी की बात वो अपने भाषणों और संवाद में अकसर करते रहते हैं, कम से कम उनका मान तो रख लेते। आंबेडकर, गांधी या नेहरू में भले ही मतभेद रहे हों, मगर वो कभी ऐसी धक्का-मुक्की या हाथापाई पर नहीं उतरे थे। आजादी के वक्त और उसके बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के जमाने में भी नेता एक-दूसरे के विचारों का विरोध करते हुए भी सम्मान करते थे। वजह यह थी कि उनमें एक-दूसरे को सुनने की सहनशीलता थी। आंबेडकर और गांधी तो अहिंसा के धुर विरोधी रहे। दोनों ने जिंदगी भर अहिंसक सत्याग्रह किया, मगर अपने धरना-प्रदर्शन से किसी को आहत नहीं किया। क्या हमारे माननीयों को उनसे सीखना नहीं चाहिए।

सारंगी को धक्का क्यों दिया, क्या यही संविधान की गरिमा

बीजेपी सांसद प्रताप सारंगी ने कहा-राहुल गांधी ने एक सांसद को धक्का दिया जो मेरे ऊपर गिर गया, जिसके बाद मैं भी नीचे गिर गया...मैं सीढ़ियों के पास खड़ा था जब राहुल गांधी आए और एक सांसद को धक्का दिया जो मेरे ऊपर गिर गया।' इन सबमें एक और बीजेपी सांसद मुकेश राजपूत भी चोटिल हुए हैं जिन्हें दिल्ली के RML अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वह इस वक्त आईसीयू में हैं। अब ऐसी बातें संविधान की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा है।

क्या राहुल की यह सफाई किसी को अच्छी लग सकती है

राहुल गांधी ने कहा कि मैं संसद के प्रवेश द्वार(मकर द्वार) से अंदर जाने की कोशिश कर रहा था,तो भाजपा सासंद मुझे रोकने की कोशिश कर रहे थे,मुझे धमका रहे थे। यह उसी वक्त हुआ है। यह संसद का प्रवेश द्वार है और हमारा अंदर जाने का अधिकार है। मुख्य मुद्दा यह है कि वे संविधान पर आक्रमण कर रहे हैं। राहुल ने भले ही यह सफाई दे दी हो, मगर उनकी वजह से अगर किसी को चोट पहुंची है तो यह संसदीय गरिमा और मानवता के भी खिलाफ है।

विरोध करना अच्छे लोकतंत्र की निशानी, मगर हाथापाई या धक्का-मुक्की ठीक नहीं

कहा जाता है कि किसी भी लोकतंत्र में विरोध करना अच्छे लोकतंत्र की निशानी है। अच्छे लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष, निष्ठावान न्यायपालिक और प्रेस की आजादी बड़ी चीज मानी जाती है। मगर, जिस भी देश में संसद में मार-पीट या धक्कामुक्की होती है, उसकी आलोचना पूरी दुनिया में होती है। पहले भी भारतीय संसद और विधानसभाओं का ऐसा तमाशा दुनिया देख चुकी है। फरवरी, 2017 में तमिलनाडु विधानसभा मे विश्वास मत के लिए विशेष सत्र बुलाया गया था। बहुमत परीक्षण से पहले विधानसभा में इतना हंगामा हुआ कि सदन में कुर्सियां उछलने लगीं। स्पीकर की कुर्सी और माइक्रोफोन तोड़ दिया गया, उनकी शर्ट फाड़ी गई। इसी तरह की घटनाएं यूपी विधानसभा में भी हो चुकी हैं।
संविधान की किताब में हाथ में लेने और दोनों महापुरुषों की फोटो साथ में रखने से उनकी विरासत संभालने की मैच्योरिटी नहीं आ सकती। इसके लिए तन ही नहीं मन से भी उनके विचारों को अपनाना होगा, तभी संविधान और संसद की मर्यादा की रक्षा हो पाएगी।

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

महात्मा गांधी, नेहरू और सावरकर की आलोचना हो सकती है लेकिन आंबेडकर की नहीं, क्यों? | Opinion

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now